तेरे बिना
तेरे बिना
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जिया नहीं गया हमसे
वो एक भी पल
जो गुज़ारा हमने तेरे बिना
इस ऊँची चारदीवारी में
लौट आती हैं सारी यादें
रोशनी भरे उजालों में
जी रहे ना जाने अब भी क्यों
ढूंढ़ते शायद तुझको चाँद तारों में
बस आस बाकी कुछ नहीं
उम्मीदों की डोर अब छूट रही है
तेरी आवाज़ भी सुन पाएँगे कभी
शायद इसी खातिर
खुद को नज़रबंद कर दिया
हिज़्र के ग़मगीन गलियारों में!