तेरा इस्तकबाल
तेरा इस्तकबाल
सुबह क्यों ना हो मेरी पलकें भारी, रात भर तुम इन आंखों में जो रहते हो,
कहने को हम सोया करते हैं, मगर शब-भर ख़्वाबों में तुम आते-जाते रहते हो।
हो कोई शराबी तो शराब को इल्ज़ाम दिया जाता है,
बन जाए कोई आशिक तो शबाब को इल्ज़ाम दिया जाता है,
कांटों की दास्तां पूछे तो गुलाब को इल्ज़ाम दिया जाता है,
कोई नहीं करता गुनाह कबूल अपना, हो पलकें भारी
तो ख़्वाब को इल्ज़ाम दिया जाता है।
हकीकत में दीदार नसीब नहीं, ख़्वाबों
में ही दीदार किया करते हैं,
हम वो दिलदार हैं जो हर पल महबूब के नाम का ही दम भरा करते हैं।
कसम खुदा की इन आंखों ने जब से दीदार तेरा किया,
भूले से भी कभी इसने ना खुदा का दीदार किया।
जब से तेरे कूचे में आ गए हम, इन नज़रों को ना नज़र आता कोई भी और मंज़र,
अब तो आखिरी यही तमन्ना है तेरे ही कूचे में जिएं-मरे हम।
हो दमे-आखिर और तेरा दीदार करें हम, भले हो कब्र में,
खुदा से ले लें मोहलत थोड़ी सी और तेरा इस्तकबाल करें हम।