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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

तब हम क्या करें?

तब हम क्या करें?

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कोई कह दे कि वक्त तुम नहीं देते,
जबकि वक्त उसके साथ नहीं, उसके लिए ही खर्च किया हो,
फिर भी वो इल्ज़ाम दे कि दूरियां हमने रची हैं,
तब हम क्या करें?

कोई हमारे दर्द को "ड्रामा" कह दे,
जबकि घाव भरे हों असली खून से,
फिर भी वो कहे, "तुम दुख के एक्टर हो,"
तब हम क्या करें?

जब बार-बार कोई फोन काटते रहें,
तुम्हारी आवाज़ से भागे वो,
और तुम इक फोन ना उठाओ तो मुंह फुला दे,
जब इंतज़ार हमारी ज़िम्मेदारी हो,
और उनका इंतज़ार ना होना भी,
तब हम क्या करें?

तब हम क्या करें?
बस इतना करें
चुपचाप अपनी घड़ी देखो,
और बिना शोर किए उस वक्त को अपने हाथों में ले लो,
जो अभी भी तुम्हारा है।

अपने दर्द को एक कविता बना लो,
जिसे सिर्फ वही समझेगा जिसने कभी दर्द देखा हो।

अपने फोन को एक आईने की तरह कर लो,
और उसमें देखकर पूछो – "क्या मैं भी किसी का वक्त, किसी की बात,
इसी तरह काटता हूँ?"

शायद...
खुद से मिलने निकल पड़ें एक दो कदम,
उन रास्तों पर जो अब तक सिर्फ दूसरों के लिए चले।

शायद...
जो बचे हैं दिल के कोने,
वहां खुद के लिए एक दीपक तो जले।

क्योंकि यह सच है,
कुछ लोग रहेंगे तुम्हारे अंधेरे की तरह,
जिनके लिए तुमने उजाला चुना है।
लेकिन फिर भी तुम,
उजाला देते रहो,
देने से यह उजाला नहीं घटेगा।
और तुम्हें भी इक दिन मिलेगा - 
यही उजाला,
सब्र रखो।


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