ताक़त हो तुम मेरी
ताक़त हो तुम मेरी
पहली मोहब्बत का,
ख्याल तुमसे ही आता है,
तुम्हें देख न जाने क्यों,
दिल ठहर जाता है।
तुम्हें देख-देख,
मैं नहीं थकती,
तुमसे बातें,
कर-कर नहीं थकती।
तुम्हें सोचकर,
पहली मोहब्बत का,
खूबसूरत ख्वाब,
याद आ जाता है।
तुम्हें देख,
न जाने क्यों
दिल फिर-फिर,
ठहर जाता है।
आधी रात में कुछ,
सोयी कुछ जागी-सी मैं,
तुम्हारे इंतज़ार में,
कुछ जागी सी मैं।
आँखों में अश्क,
लिए फिरती थी,
माथे पर शिकन,
लिए फिरती थी।
जब तक टकराई,
न थी राहे तुमसे,
नज़रो को कुछ,
झुकाकर फिरती थी।
राहें बदल गयी,
ख्वाब बदल गए,
देखा तुमने कुछ इस कदर,
मेरे मिजाज़ ही बदल गए।
पसंद बदल गई,
नज़रिया बदल गया,
वो माथे की,
शिकन बदल गयी।
झुकी हुई वो नज़रे,
अभिमान से उठ गयी,
साथ किसी के कुछ,
ऐसी दुनिया बनाई,
की शायद मेरी,
दुनिया ही बदल गयी।
आँखों में अश्क,
अभी भी है,
मगर किसी को,
अपनाने की खुशी है उनमें।
नज़रे भी झुक,
जाती हैं कभी-कभी,
मगर इस दफ़ा किसी की,
तस्वीर है उनमें।
पहली मोहब्बत की,
कुछ अनकही दास्ताँ,
अनजाने से ख़्वाब में,
कुछ अनसुना-सा रास्ता।
कमज़ोर कर देती हैं,
बहुत को ये मोहब्बत,
पर अभिमान है तुम पर मुझे,
ताकत बनकर निखर,
रही है हमारी मोहब्बत।