नन्हा दीप
नन्हा दीप
मिट्टी का हूँ तो क्या हुआ,
चुनौती दे रहा हूँ स्वयं के एतबार पर,
अमावस है तो क्या हुआ,
रात भर जलता रहूँगा मैं तेरे द्वार पर।
आज सारी असमानताओं को तोड़ दे,
अंधकारमय उस बस्ती को सितारों से जोड़ दे,
दीवाली के दिन भी बुझे है दीपक जहाँ,
ऐ हवा मेरी लौ का रुख उस ओर मोड़ दे।
उम्मीद भरी आँखों से देखा है जिन नज़रों ने
उन आँखों में खुशियों को सराबोर दे।
हवा.....तू तो सर्वव्यापी है
उन्नति के दरवाजे बंद है जिन राहों पर,
उन दरवाज़ों को तू खोल दे,
के हवा मेरी लौ का रुख उस ओर मोड़ दे।।