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Rachna Vinod

Abstract

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Rachna Vinod

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ताज़ा हवाएं

ताज़ा हवाएं

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खुली वादियां विशाल गगन

ताज़ा हवाएं हर कोई मगन

खिले फूलों से महकती बहारें

मिल कर बढ़ाएं जीने की लगन।


सुहानी सुबह तपती दुपहरी

सांझ की लाली में मिलन की बेकरारी

कहीं ढलता तो कहीं चढ़ता सूरज

कभी चांदनी तो कभी अमावसी रात्रि।


आकाश-धरा का आभासी मिलन

उफ़क छूने की लालसा में तन-बदन

क़ुदरत के दिलकश पसमंज़र में

कभी-कभी सोच का हक़ीकी दर्शन।


परिंदों से पंख लगा इधर-उधर घूमते

नदियों, झरनों की मस्ती में झूमते

चाहतों के झूलों में हंसते-हंसते

मोहब्बतों की ख़ामोशी में बतयाते।


आपसी प्यार-मोहब्बत में

उलझे सवालों के सुलझे जवाबों में

इक-दूजे में अपना अक़्स पाएं

रिश्तों की पाकीज़गी में।


परबत-परबत हसीं ख़्वाब बुनें

अपना नसीब अपना जहां चुनें

इक-दूजे की सलामती की दुआओं में

सांयकाल निज पनाहों की ओर मुड़ें।


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