स्वतंत्र देश ? (day 4)
स्वतंत्र देश ? (day 4)
जब इन्सान कुऍं से पानी भरता था
सभी का काम पाँच-छ बाल्टी में निबटाता था
आज पाँच बाल्टी तो लगा जाते हैं संडास में
आठ-दस बाल्टी धोने को कार में
नहाते हैं बाथटब में, कितना पानी फेंकते हैं
सरकारी नल काट के पानी मुफ़्त में बहाते हैं
जाने क्यों जनता को मुफ्तखोरी की आदत है
ये तो हमारी बे-ईमान नीयत की अमानत है
मॉल में कैरी बैग का दाम लेते हैं
वहाँ खुला सामान ट्रॉली में भर लेते हैं
पंसारी देता है मुफ़्त में तो सभी समान
अलग-अलग पन्नियों बँधवा लेते हैं,
ज़मीन पूरी घेर के घर बनवाते हैं
इंच भर छोड़ते नहीं,गाड़ी फुटपाथ पर रखते हैं,
क्या ये नागरिक सड़क का किराया देते हैं?
चलने की जगह नहीं गाडियाँ दाएं-बांये हैं ,
एक्सीडेंट होने पर गालियाँ, सरकार को देते हैं
खड़ी गाड़ी में, ए सी चलाते हैं,
पेट्रोल के दाम और प्रदूषण के लिए,
सरकार को कोसते हैं,
ऐसे उन्नत चरित्र के मेरे देशवासी
बड़े जोश से स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं
पूछते नहीं ख़ुद से कि, क्या हम स्वतंत्र हैं?
दिमाग से तो सभी, बेईमानी के परतंत्र हैं...
पचहत्तर सालों से स्वतंत्र हैं तो चरित्र भी सुधारिए,
देश की छवि सुधारने में तत्परता दिखाइये,
गुलामों की तरह सिर्फ़ सरकार! सरकार! मत कहिये
आप भी सक्षम हैं, कुछ आप ही करिए,
मुफ़्तखोरी छोड़िए, ये तो ग़ुलामी है,
भिखारी की आज़ादी भी, क्या आज़ादी है?
हिन्दी के प्रयोग पर लज्जा आ जाती है,
अंग्रेजी बोलकर इज़्ज़त बढ़ जाती है,
दिमाग से दास हैं, आप ख़ुद मानते हैं,
अंग्रेज महान और आप स्वयं बौने हैं,
गौरव नहीं है देश-वेष और भाषा पर
कितने कमज़र्फ और कैसे नालनायक हैं?
जो स्वाभिमानी हैं , विचारों से स्वतंत्र हैं,
देश और धरती के लिए कृतसंकल्प हैं,
वही स्वतंत्रता दिवस मनाने के अधिकारी हैं
देश और भविष्य के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।