स्व-कद्र
स्व-कद्र
उनकी क्या करेगा कोई कदर
जो खुद से ही हो गये,बेकदर
जिंदगी में कुछ न कर पाते है,
स्वाभिमान की छोड़ देते,डगर
उनका कुछ नही हो सकता है,
जो अनसुना करते आत्म-स्वर
उनकी क्या करेगा कोई कदर
जो खुद से ही हो गये,बेकदर
इनकी बिरादरी ऐसी होती है,
जैसे कुंडली मारे बैठा विषधर
>खुद दुःखी,औरों को दुःखी करे,
ऐसे लोग होते है,आपदुःखी घर
उनकी कोई क्या करेगा,कदर
जो खुद से ही हो गये,बेकदर
तू ध्यान,तुझे खुश रहना गर,
खुद की अवश्य करना,कदर
तू स्वाभिमान को जिंदा रखेगा,
तब ही बना पायेगा ख्वाब-शहर
जिसे होती दुनिया मे स्व-कदर,
वो ही बनता है,यहां सर्वश्रेष्ठ नर।