सूरज
सूरज


उठता हूं मैं सही समय पर
मन करता पर कभी ना सोता
पूर्व दिशा में घर है मेरा
मिटा देता हूं घोर अंधेरा
लाल वस्त्र में उठता हूं मैं
लाल वस्त्र में सोता हूं मैं
मेरी किरणें भी उठ जाती है
सुबह सवेर
ओस कणों से मुंह धो कर
फूलों का रस पीने आ जाते
सारे भंवरे
पेड़ों के पत्ते भी खुश होकर
भोजन नित्य बनाते हैं
कभी कभी बादल आकर
मुझे सताते हैं
पर मेरी ताकत देख
बहुत घबराते हैं
थोड़ा बहुत बरस कर
छूमंतर हो जाते हैं
अब एक सीख दे जाता हूं
तुम भी नित्य करो वही
जो मैं कर जाता हूं
औरों को जीवन दो सुख दो
है सच्चा ज्ञान यही।