सुलगते अरमान
सुलगते अरमान
जल चुके थे सब अरमां मेरे
जब उसने प्यार से इनकार
किया था।
बदकिस्मती थी मेरी..
जो मैंने उससे बेहिसाब
प्यार किया था ।।
याद है आज भी जब उसने
इश्क़ का पैग़ाम दिया था।
समझो मेरी मौत का उसने
पूरा इंतज़ाम किया था ।।
समझा नहीं उसने कभी मेरे
ज़ज्बात को,
आज भी सुलगते हैं अरमां मेरे
जब कहीं भी उसकी बात हो।।

