सुकून
सुकून
सोचा होगा छुपा कहीं, मैं ढूंढ़ ही लूंगी ।
बस मिल जाये जो एक बार
फिर न उसे जाने दूंगी ।
रखूंगी पल्लू में बांध में, तिजोरी में छुपा दूंगी।
कानों कान किसी को ये हवा भी न लगने दूंगी।
खोजा बहुत सुकून पर वो मिला न था कहीं।
फिर एक झलक सी दिखी मुझे,
परिवार के साथ में।
पर फिर से वो गायब हो गया
बड़ों की इक फटकार में।
फिर से खोज मेरी थी जारी,
और खोज भी लिया था मैंने उसको शायद
बच्चों की इक मुस्कान में।
उसमें भी मैंने मैं को खोया
मृगतृष्णा सी थी प्यार में।
फिर थक गई मैं न पैरों में अब मेरे जोर था।
बैठी दो पल तो सोचा सुकून तो न मिला मुझे
उम्र मेरी यूं ही बीत गई।
बेटी, बहन, पत्नी ,मां सब बनी
पर इस सब में मैं खुद को ही भूल गई।
छोड़ सारी जिम्मेदारी,
एक मग कॉफी का उठाया,
बंधे बालों को खोलकर बंधन सारे खोल दिये।
थोड़ी गुफ्तगू खुद से की,
थोड़ी कागज और कलम से।
फिर मिला सुकून मुझको जब
मन के भावों को शब्दों में हू ब हू
उतार दिया।
थी अब भी बंधी हर रिश्ते में ,
पर जो साथ मिला कॉफी का तो
खुद के मन को पंछी सा आजाद किया।
और अब कहीं जाकर मेरे दिल को
चैनों सुकून मिला।