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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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सुकून के पल

सुकून के पल

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दुनिया की भाग दौड़ में,

परेशान हो कर,

सुकून के कुछ पल,

अगर ढूंढना हो तो,


अपनी जिंदगी के कुछ

लम्हें उठा लाना,

जिनके बीच टहलते हुए,

एक संकरी पगडंडी

से गुजर कर,


यादों के बग़ीचे में,

खिले असंख्य फूलों को

छू कर महसूस करना,

जिंदगी में गुजरे कुछ हसीं पलों को,

कुछ खट्टी कुछ मीठी यादों को,


जो गुदगुदाते हैं दिल को,

कभी डराते हैं,

कभी आंखों में आंसू बन

टपक पड़ते है बेशुमार,


तू ठहर जाना वहां,

उन यादों की पथरीले

संकरी पगडंडियों में,

कुछ पल के लिए,


जहां अब कोई नहीं आता,

सिर्फ तेरी यादों के सिवाए।


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