सुकून के पल
सुकून के पल
सुकून के पल कहाँ मिल पाते हैं
जितना ढूंढो ये कहीं दूर नज़र आते हैं
ये जीवन की आपाधापी में ओझल से हो जाते हैं
जितना पास जाओ मृगमरीचिका की तरह ....
मरुभूमि में जल से दिखते हैं पर वाष्पित हो जाते है
हो जाते हैं पंछी से झट से पट से उड़ जाते गगन में
जितना पकड़ो उतना पास नहीं आते हैं ......
पर खोजना स्वयं को सच्चे मन से ...
सही अर्थ में तब ढूंढ पाओगे वह सुकून के पल
वह आनंद के कमल ..
आत्मा रूपी सरोवर में खिलते हैं ...
सुकून के पल यथार्थ में मिलते हैं ...
पर सभी कहाँ खोज पाते हैं ...
भौतिकता के सागर में डूबकर सुविधाओं को ही
गले लगाकर सच्चे सुख के सुकून के पलों से
बहुत दूर हो जाते हैं
सुकून के पल हैं वे आत्मिक आनन्द के क्षण जबकि
आपके भीतर मृगतृष्णा सी इच्छाएं शून्य सी हो
जाती हैं
और आत्मा इन पलों में आनन्द के सागर में गोता
लगाती है ....
