" सुख -दुःख "
" सुख -दुःख "
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दिल के संदूक में
कितनी बातें बंद करके
हमने रख छोड़ी हैं !
गम की पोटलियों में
कुछ ज्यादा है
खुशिओं के झोले में
कुछ थोड़ी है !
खट्टी -मिठ्ठी यादों के
स्मृतिओं को हम कोने में
छुपाये रहते हैं !
बस खाली लम्हों में
छुप छुप कर
अपनी पोटलियों को
गिनते रहते हैं !
दुःख देने वालों को
हम भला
कैसे भूल जायेंगे ?
व्यथा ,दर्द, धोखा के
प्रहारों से हम
बहुत कुछ सीख पाएंगे !
दुखों ने ही हमें
चट्टान बनना सिखाया !
तूफान ,सुनामी और
धाराओं के विरुद्ध
लड़ना सिखाया !
सुख तो
जिसने भी दिया
उसको भला कौन
भूल सकता है ?
पर गम को हम
कुछ कम ना समझें
उसके बिना कुछ भी
नहीं हो सकता है !