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Lakshman Jha

Abstract

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Lakshman Jha

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" सुख -दुःख "

" सुख -दुःख "

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दिल के संदूक में

कितनी बातें बंद करके

हमने रख छोड़ी हैं !

गम की पोटलियों में


कुछ ज्यादा है

खुशिओं के झोले में

कुछ थोड़ी है !

खट्टी -मिठ्ठी यादों के

स्मृतिओं को हम कोने में

छुपाये रहते हैं !


बस खाली लम्हों में

छुप छुप कर

अपनी पोटलियों को

गिनते रहते हैं !


दुःख देने वालों को

हम भला

कैसे भूल जायेंगे ?

व्यथा ,दर्द, धोखा के

प्रहारों से हम

बहुत कुछ सीख पाएंगे !


दुखों ने ही हमें

चट्टान बनना सिखाया !

तूफान ,सुनामी और

धाराओं के विरुद्ध

लड़ना सिखाया !


सुख तो

जिसने भी दिया

उसको भला कौन

भूल सकता है ?

पर गम को हम

कुछ कम ना समझें

उसके बिना कुछ भी

नहीं हो सकता है !


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