"तोड़ो अपनी मौनता "
"तोड़ो अपनी मौनता "


भले सब मौन बैठे हों ,नहीं मैं मौन रह सकता !
कोई भी दर्द से तड़पे ,उसे मैं सह नहीं सकता !!
व्यथा की वेदना को मैं ,सदा ही बाँट लेता हूँ !
कोई उलझन में हो साथी ,उसी का साथ देता हूँ !!
अभी भी हैं कई बातें ,जो सुनकर ठेस लगती है !
सभी लड़ते हैं आपस में ,नहीं कोई बात होती है !!
लड़ाते हैं हमें सब दिन, बनाते काम अपने हैं !
नहीं परवाह है उनको ,बिखरते सारे सपने हैं !!
कोई तो वर्ग है दूषित ,जहर के बीज बोता है !
हमें अपनों से लड़ने का ,सदा कोई जाल बुनता है !!
नहीं अब मौन रहना है ,सभी को खुल के कहना है !
समझ में बात अब आयी ,इसे सब को बताना है !!
भले सब मौन बैठे हों ,नहीं मैं मौन रह सकता !
कोई भी दर्द से तड़पे ,उसे मैं सह नहीं सकता !!