सुई धागा
सुई धागा
सुई तो होती छैल छबिली, धागा सीधा सादा,
सुई करती रहती छेद, धागा सिलता जाता।
सुई धागे की प्रेम कहानी, बहुतों ने न जानी,
एक है थोड़ी कड़क, दूसरा नरम दिलजानी।
सुई चलती आगे आगे, धागा उसके पीछे भागे,
रहती दोनों में रेस, कौन पीछे कौन आगे।
दोनों का जोड़ बड़ा बे मोल, लगाए कितने टांके?
पुराने हो या नये हो कपड़े, झट लगा देते टांके।
सुई धागे का रिश्ता, दर्शाता सच्ची प्रीत,
एक दूसरे में दोनों, रहते हैं सदा समाहित।
मिल जाते जब दोनों, करते नहीं अहित,
जिंदगियों को सिलने में, खुद को करते अर्पित।
अच्छे विचार सुई कहलाते, वाणी विचार का धागा,
जिसके पास दोनों न रहते, जीवन उसका अभागा।
विचारों को जब वाणी मिलती, लिख दी जाती भगवत गीता,
रचते महाभारत, लिखी जाती रामायण की सीता।
विचारों की सुई जब चलती, पिरोकर वाणी का धागा,
वेदों के उच्चारण से, धर्म भाव संसार में जागा।
बनी आसमान की चादर, टांक दिए तारे हजार,
दुल्हन की ओढ़नी सजा दी, चढ़ा प्यार का खुमार।
सुई धागे का प्रेम अनोखा, ऐसा मिलन कभी न देखा,
एक को सख्त सख्त, दूसरे को सदा नरम ही देखा।
एक दूजे में मिलकर, दुःखों के बादल ढकते देखा,
गरीब की इज्जत को, सुई धागे से सिलते देखा।
प्रभु की माला गूंथी जाती, सुई धागा जब होते साथ,
स्नेह की बगिया में खिलते फूल, करते जब हम प्यार की बात।
सुई धागे से सिलते चादरें, मजारों पर चढ़ाई जाती,
दोनों की यह स्नेह भावना, मन में प्रीत का भाव जगाती।
सुई धागे से आज मैंने, सीखी यही एक बात,
सुई का दिल चीरकर, धागा करता प्रीत की बात।
दिल में रहकर ही करें हम, दिल से दिल की बातें,
ऐसी ही होती जीवन में, दो दिलों की चाहतें।