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Praveen Gola

Romance

3.8  

Praveen Gola

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सुहागरात

सुहागरात

1 min
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मैं सिमटी बाहों में अपनी ,

सोच शब्द ये " सुहागरात " ,

कितने अनगिनत सवालों की ,

आई थी अब नई रात।


बाहर आँगन में गूँज रहा ,

ठहाकों का अनोखा शोर ,

अंदर मन मचल रहा ,

बनके कोई चितवन चोर।


वो आये हौले से ,

कमरा खिल उठा एकदम ,

उनके छूने से .....

बजने लगी नई सरगम।


पलकें भीगने फिर लगीं ,

जब वो बोले " सुहागरात ",

इस शब्द से लगता डर ,

जिसकी होती हर जगह बात।


वो हँसने लगे जोर - जोर ,

कर संधि - विच्छेद उसका ,

सुहाग - रात का मतलब ,

होता एक नया स्वपन जग का।


जो रात बीत जाए ,

अपने सुहाग के संग ,

बस और कुछ नहीं ,

लाती ये भी नए रँग।


मैं मूंद पलकें तब सोई ,

रख काँधे पर सर उनके ,

वो रात गुजर गई ,

बिना तन के मिलन के।


जब मन का मन से हुआ मिलन ,

तब तन खुद~ब ~खुद मचल गया ,

आने वाली बाकी रातों में ....

" सुहागरात " का मतलब समझ गया।।



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