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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Inspirational

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Inspirational

सुधि बिसरी वेदना पसरी

सुधि बिसरी वेदना पसरी

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दर्द की चादर से 

वैसे तो मेरा कोई लगाव न था ।।


न चाहते चाह्ते ये

 न जाने कैसे मेरे अंग से आ लगी 

पहेले तो मै कुछ समझा ही नही 

इसके इरादे क्या हैं ।।


धीरे धीरे इसने अपने आगोश में

मुझको जब कसना शुरु किया ।।

तब कहीं जाके मुझे

 इसके कुटिल भाव का भान हुआ ।।


बहुत देर हो चुकी थी

तब तलक अब वापसी मुश्किल थी ।।

दर्द की चादर से 

वैसे तो मेरा कोई लगाव न था ।।


न चाहते चाह्ते ये

न जाने कैसे मेरे अंग से आ लगी ।।

आज सोचता हूँ हम सब 

इस दुनिया में क्युं भेजे जाते हैं ।।


आज भरोसे से कह सकता हूँ 

हमारे बुरे कर्म ही ये सब करवाते हैं ।।

वस्ल की शब हो मौजू हो इश्क का

मिज़ाज़ मौसम का शायराना हो अगरचे।।


तो क्या बात है 

तेरे होने से ये दर्द दब जाता है ।।

तेरी मौजूदगी में इसका सिलसिला

थम जाता है।।


मैं नही चाहता तू जाए मुझको छोड़ कर

वक़्ते हालात में ये कहाँ हो पाता है।।

दर्द की चादर से 

वैसे तो मेरा कोई लगाव न था 


न चाहते चाह्ते ये 

न जाने कैसे मेरे अंग से आ लगी.


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