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Ram Chandar Azad

Classics

4  

Ram Chandar Azad

Classics

सुबह-सुबह

सुबह-सुबह

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तड़के की ठंड

कड़के की ठंड


रजाई की गर्मी

आलस है जमी


उठने न देती

धैर्य हर लेती


सूरज से आशा

नहीं तो निराशा


छाया है कोहरा

कष्ट है दोहरा


जम गया पानी

सच्ची कहानी


मोटर की पों पों

बन्दर की खों खों


जग को जगाती

हवा सरसराती


मन्दिर की घंटी

छोटा सा बंटी


पढ़ता चौपाई

भोर हो आई


उठ जा सजनी

बीत गई रजनी


चाय की प्याली

देती खुशहाली


गर्म गर्म सुर्र सुर्र

पक्षी उड़े फुर्र फुर्र


टूट गया सपना

कुछ नहीं अपना।।


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