सुबह का भुला
सुबह का भुला
सुबह का भुला
यदि लौट आये शाम को
तो उसे भूला नहीं कहते
यह एक सुंदर, सर्थक विचार है
जिसने बदल दिए
जिंदगी के रंग
जिसके पांव जमीं पर
रहते हुए
जमीन पर नहीं टिकते
इंसानियत के नाम पर
विचारधाराएं सरे आम बिकती
कई कई झूठ
इंसानियत को नकाबपोश कर
चलते रहते बदरंग
कदम बढ़ते
अपराध वृति की तरफ
जो करते इंसानियत को बदरंग
अचानक यदि होने लगे
अपराध बोध
अपने कर्मों की आंच जलाने लगे
अन्तर्मन को
और चल पड़े वह सद्ऱाह पर
मानवता की सेवा में
जीवन के उत्कर्ष में
तो माफ है सब
कहेंगे ,सुबह का भुला
शाम को घर लौट आया
यह बहुत बड़ी बात है !