सुबह इतनी भर नहीं
सुबह इतनी भर नहीं
सुबह इतनी भर नहीं होती कि
सूरज निकला और रोशनी हो गया
दिखने लगीं अंधेरे की मिटायी गयी सीमाएं
रौशनी का रंग भर नहीं होती है सुबह
एक एहसास भी होता ताजगी का
ऐसा होता है जो है वो तो है
कुछ और दिख जाता है जो नहीं था
और ये कुछ और
कोई विचार भी हो सकता है
कोई प्रबंध भी हो सकता है
कोई धारा भी हो सकती है
कोई आदमी भी हो सकता है
जो कभी दिखा नहीं था
अपनी मनुष्यता के साथ।
कह सकते हैं कि
परिवर्तन की शुरुआत भी होती है
सुबह
दो विपरीत भावों के बीच
जगमगाती हुयी
अजनबी सी।