स्त्रियां सदियों से ऐसी ही है
स्त्रियां सदियों से ऐसी ही है
स्त्रियों के क्या कहने
हर चीज बचाकर रखती है
छोटी छोटी चीजों को
सजा संवार कर रखती है
अन्न का कनस्तर ना खाली रखती
मुट्ठी भर अनाज सदैव रखती
अन्न भंडार ना खाली होने देती
कहना इनका इस से बरकत होती है
खाने में स्वाद कम ना होता
जीवन में मिठास बना रहता
कम में ही स्वादिष्ट भोजन बनाकर
जानें कितने तेल मसाले बचा लेती है
न जाने कितनी चीजें को
संभाल संभाल कर रखती है
भंडार कक्ष में भी संजोकर
कितनी भूली बिसरी चीजें रखती है
पुरानी से पुरानी तस्वीरों को
यूं संभाल कर रखती है
और कोई कदर ना कर पाता
स्त्रियां सदैव कद्र करती हैं
नए पुराने कपड़ों को
यूं सहेज कर रखती है
ना जाने कब कौन काम आ जाए
यूं संभाल कर रखती है
एक स्त्री अपनी परिकल्पना में
समय की एक ही धारा में
कभी खुद को स्थापित और
कभी खुद को निर्वासित करती है
यह अपना दुख जल्दी नहीं कहती
लबों पर मुस्कान रखती है
दिल तोड़ देता है इंसान तो
ईश्वर के पास दुख गिरवी रखती है
यादों को अपने मन में
ऐसे समेट कर रखती है
जैसे ताजे फूलों में
खुशबू सी बनी रहती है
घर की जिम्मेदारियों को
ऐसे ओढ़कर रखती है
किसी को पता ना चल पाता
हर काम समय पर करती है
वह कभी नहीं मरती
ताउम्र जंग लड़ती है
अपने और अपनों के लिए
वो तो शहीद हो जाती है
कितनी भी चंचल चपला हो
वो गंभीर हो जाती है
कैसी भी परिस्थिति हो
हर जगह ढल जाती है
काम याद आ जाए तो
काम से नहीं चूकती है
नींद की झपकी जो आ जाए
आंखों में बचाकर रखती है
हर कुछ बचा लेती है वो
सबकी इच्छा पूर्ण करती है
पर दो घड़ी का सुकून
अपने लिए कहां बचा पाती है