स्त्री
स्त्री
सम्पूर्ण ब्रह्मांड को
सृजित करने की
असीमित, अपरिभाषित
शक्ति को स्वयं में
समाहित करती "स्त्री"।
संकल्पशक्ति की देवी
मातृत्व क्षमता से युक्त
नि:स्वार्थ भाव से
पुरूष प्रेमाषक्ति का
आलम्बन बनकर
उसके पुरूषत्व को
स्वयं में स्वरूप देती "स्त्री"।
प्रेम और करूणा की
अत्युत्तम समानार्थी
सम्पूर्ण सृष्टि के साथ
स्वयं में सन्निहित सहृदयता
की अन्तरप्रतिध्वनि "स्त्री"।
अन्तर्मन से जुझती
विचार सागर के लहरों
के थपेड़ो से लड़कर
सीपी के भीतर बैठे मोती सा
अनछुई, पवित्र, चमकती,
निखरती, शसक्त, शक्तिशाली
व्यक्तित्व की स्वामिनी "स्त्री"।
सामाजिक ताने-बाने में
खुद को बुनती-उधेड़ती
सामंजस्य के बुनियाद पर
रिश्तों को जोड़-जोड़कर
कुटूम्ब रूपी मजबूत महल
का निर्माण करती "स्त्री"।
संस्कार, मर्यादा, परम्परा
जैसे शब्दों को स्वयं में
परिभाषित करती हुई
अत्यन्त सहर्षता के साथ
इन जिम्मेवारियों को
स्वयं के कंधों पर ढोती "स्त्री"।