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प्रीति शर्मा

Tragedy

4.7  

प्रीति शर्मा

Tragedy

"स्त्री हूँ मैं "

"स्त्री हूँ मैं "

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पराये घर जाना है...

पराया धन है...

कह-कहकर

स्त्री को अपने ही समाज में

बना दिया गया पराया।

स्त्री है तो धैर्य रखना

उसकी ही है जिम्मेदारी।

स्त्री है तो सहना भी

उसकी ही है मजबूरी।

स्त्री है तो समझौते करना

उसका ही है दायित्व।

स्त्री है तो शान्ति कायम रखना

उसका ही है उत्तरदायित्व।।

क्यों जी...?

स्त्री होना क्या गुनाह है..?

स्त्री के दामन में ही कांटे भरेगें आप?

स्त्री क्या दोयम दर्जे की ही अधिकारी है?

सावधान ..!

ये भारत है

आर्यों का देश

यहां स्त्री पूजनीय है,

वन्दनीय है, निन्दनीय नहीं!

पर ये उसके आन्तरिक गुणों को

सम्मान देने के लिए है।

उसको झुकाने के लिए नहीं।

बहलाने के लिए नहीं।

भ्रम में फंसाने के लिए नहीं।

उसके धैर्य को चुनौती ना दें!

उसकी सहनशीलता को

कमजोरी ना समझें!

आत्मसम्मान ही

स्वाभिमान है

उसका।

स्त्री हूं मैं

जानती भी हूं

और मानती भी हूं

करती हूं गर्व स्त्री होने पर

स्वयं स्वामिनी है स्त्री अपने

मन की विचारों अभिव्यक्तियों की।

स्वयं लिया निर्णय वनगमन का

छोड़ वैभव विशाल महलों का

और स्वयं ही किया निर्णय

पति बिन महल रहने का

वर भी चुने सावित्री,

संयोगिता बनकर

गर्व है मुझे कि

स्त्री हूँ मैं!!



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