स्थानीयता की पीड़ा
स्थानीयता की पीड़ा


फिर वही ढपली,
फिर वही राग,
अलापने लगे,
राजनीति के धुरंधर !
कोई मुद्दा तो मिले
ललकारने का,
आखिर उन्हें भी
तो बचाना है
अपनी खोयी प्रतिष्ठा !
पर इसके पीछे
लोगों न दिग्भ्रमित करें ,
आखिर कब तक
फिर एक और तेलंगाना
आप बनायेंगे ?
फुट से इतिहास को
कितने दफे दोहरायेंगे ?
हम अखंड भारत
के संतान है
हमने अपने रक्त
से इस धरती को सींचा है !
यह देश यह प्रान्त
हमारा है
यह प्राणों से भी प्यारा है !!