सरताज
सरताज
उम्मीदों के चुल्हे में जलाये सब गम आबाद है
लकडियाँ लगायी बरबादी की कोयले को किया आजाद है
लकड़ी में छुपा था अंगारा , अंगारे में छुपी थी राख है
राख से बनी माटी, माटी से फिर बना इन्सान सय्याद है
कल किसीका साम्राज्य था जागीर आज जिसे समझा है
मेरा मेरा कहते रहना बंदे बस वहम तेरा मजाक है
कोई नही बचाता यहाँपर जब समय अपनी चाल चलता है
मौत भी करम नही तबतलक फरमाती
जबतलक कर्मो के हिसाबो का होता नही लिहाज है
संगदिल होते हैं वह 'नालंदा' हदसे ज्यादा वतन से प्यार करते हैं
सरहदों की तम्मनाओं में पगडंडियों पर बिखरे पड़े सरताज हैं।
