सृष्टि सृजक भी, विध्वंसक भी !
सृष्टि सृजक भी, विध्वंसक भी !
हलचल पृथ्वी की भीतरी सतह से उभरी
तो संकेत है
पर्यावरण असंतुलन का !
भूकंप, भूचाल, जलजला,
क्या फर्क पड़ता है नाम से ?
तस्वीर तो भयावह है ना !
क्यों ना कंक्रीट के जंगल की जगह
एक बार फिर से प्रकृति से नाता जोड़े ?
प्रकृति के प्राकृतिक रूप को संवारे ?
और संतुलन बनाएं रखें पर्यावरण का !
तभी मानव सभ्यता का
नामोनिशान रहेगा बचा यहां!
वरना तो बाकी भी ना रहेगा
वज़ूद हमारा!
हे मनुष्य!
समझ लो, जान लो,
सृष्टि से सृजन है,
पर न भूलें कि
अवहेलना की यदि सृष्टि की,
हस्ती मिटाने में देर
सृष्टि क्षण भर भी नहीं लगाती है।
बर्दाश्त नहीं करती है,
संतुलन से छेड़छाड़ !
सर्वनाश कर, पुनर्निर्माण करती है !
भागो नहीं कृत्रिमता के पीछे,
रखो संवारकर प्राकृतिक संसाधनों को !
सृष्टि सृजनकर्ता है, सृजक है
तो सृष्टि ही विध्वंसक भी !