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Dinesh Sen

Inspirational

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Dinesh Sen

Inspirational

सरिता और समाज

सरिता और समाज

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धरा को काट कर आई,

शिला कितने कटाए हैं।

बुझाने प्यास को तेरी,

तरुवर कितने समाए हैं।।


पहाड़ों से लड़ी हारी गुमी,

फिर भी नहीं खोई।

जीव प्यारे धरा के सब,

सोच के तब नहीं सोई।।


काटे कितने बरस,

जल ने मेरे तुझ को बढ़ाने में।

खुद हो गया कुर्बां,

फसल तेरी उगाने में।।


तूने जब रोक लिया मुझ को,

लिया तब रूप सरोवर का।

कल तक कल कल करने वाला,

हुआ था एक धरोहर सा।।


रूप मेरा था नागिन सा,

बलखाती थी इतराती थी।

तुझ को सिखलाने की ख़ातिर,

मैं र

ास्ता स्वयं बनाती थी।।


कल कल कहती, झर झर बहती,

धो के पाप भी पावन रहती।

नीर मेरा निर्मल अब तक पर,

दिन प्रति दिन दुख दारुन सहती।।


गर सच में मानो माँ मुझ को,

कर दो मुझ पर इक उपकार।

है आँचल मेरा घाट मेरे,

इनमें मत फेंको कूड़े का अंबार।।


जीत मेरी में जीत तुम्हारी,

हार में मेरी तेरी हार।

स्वच्छ रखो निर्मल जल मेरा,

बंद करो ढोंगी व्यापार।।


मेरे जीवन से जीवन तेरा,

करती सपनों को मैं साकार।

सह ली अब पर न सह सकती,

अब बंद करो ये अत्याचार।।



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