दुर्गुणों के कांटे।
दुर्गुणों के कांटे।
कैसे करुँ ! दूर प्रभु इन दुर्गुणों को, जो चुभते हैं कांटे बनकर।
दे रहे हैं दुख पल-पल, कठिन हो गया इनसे बचना ।।
देते ना कष्ट ये इतना लगने पर, जितना निकालने पर होता।
भूल जाता वह दूसरों के दु:ख को, चाहता सिर्फ अपने दुख को हरना।।
खुद की आदतें तो सभाँल न पाता, परमात्मा पर दोष है मढ़ता।
इन दु:खों से यदि तुम बचना चाहो, कोशिश करो अच्छे गुण भरना ।।
अज्ञानता में घिरा है प्राणी, कर्म वह विपरीत ही करता।
अच्छे गुणों को लाने से पहले, अवगुणों को दूर है करना।।
परिश्रम ना कर कर बुरे कर्मों पर, क्रिया कर अच्छे गुणों को पाना।
बुरे कर्म स्वत: ही निकलेंगे, किसी सत्पुरुष की शरण में रहना।।
अंतर में छाया है अँधेरा, गुरु -प्रकाश का ले तू सहारा।
साधना इतनी सुलभ बताते, नहीं पड़ेगा कहीं भटकना।।
अवगुणों को पल में दूर वो करते, चाहत जिनको उनकी है होती।
मनुष्य योनि में ही सम्भव है, परमात्मा के स्थूल दर्शन करना।।