खुद की कद्र करो
खुद की कद्र करो
क़द्र करो साखी तुम खुद की
मत करो बेज्जती तुम खुद की
हर किसी के आगे न झुको,
अपनी छवि करो पत्थर की
तन भाल करो हिमालय का
जिंदगी करो माउंट एवरेस्ट सी
नम्रता में झुकना अच्छा है,
पर दुष्ट समझते तू बच्चा है
पर काजल पे काजल लगाना
नही होता कभी भी सच्चा है
क़द्र करो साखी तुम खुद की
रखो स्वाभिमान, प्रताप सा,
तुम खुद हो लहूं बूंद हिंद की
सब्र करो,पर इतना भी नही,
कोई दे चोट तुम्हे मणभर की
तुम बैठे बस झूठ सहते रहो,
तोड़ दो लकड़ी फैले तम की
क़द्र करो साखी तुम खुद की
दीप जलाओ,रोशनी फैलाओ,
बनो तुम ज्योति हर स्थल की
पत्थर की तुम जात बन जाओ
जब बात हो स्व-इज्जत की
पर एक दुर्जनवाले दरख़्त से,
तुम दूरी रखो कोसों घर की
क़द्र करो साखी तुम खुद की
दुष्टों को न दो कभी तुम,
कोई भी खबर एकपल की
अपने को बनाओ चंदन सा,
मर मिटे तो खुश्बु दे नंदन की!
