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Laxmi Tyagi

Tragedy

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Laxmi Tyagi

Tragedy

सरहद

सरहद

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हिन्द हो या पाक !

 सरहद पर ,जब एक लाश गिरती है। 

 एक बेवा भी होती है ,

  कुछ बच्चे अनाथ होते हैं ,

  किसी माँ का आँचल सूना होता है। 

  एक जिंदगी जाती है ,

  न जाने कितनी जिंदगियाँ ,

  वीरान कर जाती हैं। 

  न जाने कितने ग़म 

  कितनी यादें दे जाती है।,

  ग़म यहाँ हो या वहाँ ,

  ग़म तो ग़म ही होता है। 

 सरहद यहाँ की हो या वहाँ ,    

  सीना तो माँ का ही छलनी होता है।  

  शहीद दोनों ही कहलाते हैं ,

  लहू तो दोनों का ही लाल है।

  क्यूँ ?इतनी जिंदगियों के तवे पर ,

  सेकतें हैं रोटियाँ , 

  कुछ मज़हबी ,मतलबी दल्ले।

क्यूँ ?कैद किये हो अपने को ,

  इन मज़हबी दीवारों में।

 कुदरत नहीं करती भेद -भाव ,

 तो तुम क्यूँ करते खाते हो ताव।

 कल क्या हो ,किसने देखा ?

 देखो तुम ,अपने आज को।

 लिखा बहुतों ने बहुत कुछ ,

 अब तो समझालो ,अपने आप को।   


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