सरहद
सरहद
हिन्द हो या पाक !
सरहद पर ,जब एक लाश गिरती है।
एक बेवा भी होती है ,
कुछ बच्चे अनाथ होते हैं ,
किसी माँ का आँचल सूना होता है।
एक जिंदगी जाती है ,
न जाने कितनी जिंदगियाँ ,
वीरान कर जाती हैं।
न जाने कितने ग़म
कितनी यादें दे जाती है।,
ग़म यहाँ हो या वहाँ ,
ग़म तो ग़म ही होता है।
सरहद यहाँ की हो या वहाँ ,
सीना तो माँ का ही छलनी होता है।
शहीद दोनों ही कहलाते हैं ,
लहू तो दोनों का ही लाल है।
क्यूँ ?इतनी जिंदगियों के तवे पर ,
सेकतें हैं रोटियाँ ,
कुछ मज़हबी ,मतलबी दल्ले।
क्यूँ ?कैद किये हो अपने को ,
इन मज़हबी दीवारों में।
कुदरत नहीं करती भेद -भाव ,
तो तुम क्यूँ करते खाते हो ताव।
कल क्या हो ,किसने देखा ?
देखो तुम ,अपने आज को।
लिखा बहुतों ने बहुत कुछ ,
अब तो समझालो ,अपने आप को।