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Devendra Tripathi

Abstract Fantasy

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Devendra Tripathi

Abstract Fantasy

सपना

सपना

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आज रात फिर तुम मुझे बहुत याद आए,

मेरे सपनों में फिर एक हसीन ख्वाब बन आए,

मैं बेचैन हो उठा तुम्हारी उल्फ़त में आज फिर,


एक मोहब्बत का सैलाब मेरे दिल में ले आए,

तुम अक्सर ऐसे ही मेरे सपनों में दखल ले जाते हो,

मुझे अपने दामन में बातें कहीं दूर लिए चले जाते हो।


मैं अचानक नींद में ही उठकर तुम्हे खोजता हूँ,

तुम दूर तलक मुझे कहीं नजर नही आती हो,

बहुत खोजता हूँ तुमको मैं इधर उधर हर तरफ,


मैं खुद को कोसता हूँ कि मेरा सपना क्यों टूट न गया,

कमसकम सामने ही अपने मन की बात कर लेता,

लेकिन बेवफा सी तुम कहीं दूर निकल जाती हो।


अक्सर तुम्हारे सामने आने की हिमाकत भी करता हूँ,

लेकिन अपने दिल की बात बयां नहीं कर पाता हूँ,

न ही अपने जज्बातों को तुमको बता नहीं पाता हूँ,


तुम नज़रों से ही मेरा कत्ल कर निकल जाती हो,

बार-बार तुम ऐसे ही मेरे सपनों में आती हो,

मुझे अपने संग संग कहीं दूर लिए चली जाती हो। 


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