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Rasmita Dixit

Tragedy

3  

Rasmita Dixit

Tragedy

सफर

सफर

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जिंदगी का ये सफर 

थोड़ा नीला थोड़ा पीला 

यु हीं चलती रहा 

हम चलते रहे 

सुबह होते गए

शाम आती रही 

रात का आना बाकी था 

वक्त ठहर गया है ये तो हमे 

अभी पता चला ।


पन्ने पलट गए 

हम अब भी उसी मुकाम पर 

खड़े होकर देख रहे हैं 

उन बेबस चेहरों को 

जो कभी अपने थे 

दिल के करीब थे 

कब चेहरे बदल गए 

दिल के सौ टुकड़े हुए 

ये तो हमे पता ही ना था 

कब हाथों से रिश्तों का ड़ोर 

खिसक चला ...........।


इक तुम ही तो थे 

सारे सफर का हमसफ़र 

कब और क्यों 

हाथ छुटा 

साथ टूटा 

ये बात आज भी मुझे 

सता रही है 

तड़पा रही है 

क्या खता थी मेरी 

वक़्त ने ये कैसा खेल खेला 

अब भी हम उन हसीन पलों को

सीने से लगा कर 

अकेले चल रहे हैं

अकेले तो हम पहले से थे 

इक भरम में जी रहे थे 

बस ये बात हम समझ ना सके

 यही तो जिंदगी की सच्चाई है 

जिसे जितना चाहो

उसने ही एकदिन 

तुम्हे मार डाला ........।


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