सफलता के शिखर पर
सफलता के शिखर पर
तीन दोस्त थे
तीन बदन एक जान थे
तीनों के दिल की धड़कन एक सी थी पर
उनके दिमाग एक दूसरे से बिल्कुल
अलग
उनके लिबास अलग थे
उनके रंग अलग थे
उनके सोचने के ढंग अलग थे
उनके काम करने के तरीके
एक दूसरे से बिल्कुल फर्क थे
पहले का नाम था
राम
दूसरे का नाम था
हरिराम और
तीसरे का मदन गोपाल
राम पढ़ने में सबसे अच्छा था और
हमेशा अपनी कक्षा में
अव्वल आता था
वह एक गंभीर स्वभाव का
बालक था
खेलकूद या अन्य विधाओं या
किसी भी प्रकार की गतिविधियों में
उसकी रुचि नहीं थी
हमेशा सच बोलने वाला
नियमों और कानूनों का सख्ती से
पालन करने वाला
खुद से ही सवाल करता
खुद से ही उनके जवाब पाने की
कोशिश करता रहता
खुद में ही कहीं खोया रहता
उलझा रहता
उसकी अपनी एक दुनिया थी
जो बस उसी में रहना पसंद करता था
एक होनहार छात्र था लेकिन
इसके अलावा बाहरी दुनिया का
उसे जरा न ज्ञान था
हरिराम पढ़ने पढ़ाने में बस
ठीक ठाक था
एक औसत दर्जे का छात्र था लेकिन
वह चारों तरफ अपनी नजरें
घुमाता रहता और
जहां से जो सीखने को मिलता
सीखता रहता
सजग रहकर और हर विषय और
क्षेत्र में रुचि होने के कारण वह
थोड़ा थोड़ा करके बहुत कुछ
सीखता जा रहा था
उसके मन में नित नये विचार
आते रहते थे और
वह उन पर मनन करता था
उनका क्रियान्वयन भी करता रहता
और सफलता भी प्राप्त करता था
इन छोटी छोटी सफलताओं से
ही वह एक बड़ी सफलता की
तरफ जाने अंजाने कदम बढ़ा रहा था
मदन गोपाल इन तीनों में सबसे शरारती
बालक था
किसी भी बात को कभी गंभीरता से
न लेना उसकी प्रकृति बनती जा रही थी
खेलकूद और शरारतों में ही
उसका ध्यान रहता था
अपनी पढ़ाई की तरफ तो उसने
कभी ध्यान ही नहीं दिया
हर साल फेल होता था
इसका नतीजा यह हुआ कि
एक दिन हारकर स्कूल प्रशासन ने
उसे स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया
यह तीन भिन्न भिन्न प्रकृति के बालकों के जीवन की
कहानी की शुरुआत थी
जो शुरुआत होती है
वहीं अधिकतर कहानी का अंत भी
होता है
इन तीनों में सबसे अधिक
जीवन में सफल
हरिराम रहा क्योंकि
उसने पढ़ाई के साथ साथ
अपने भीतर के गुणों को पहचाना और
उनका विकास किया
समाज से भी अपना सामंजस्य
स्थापित किया
वह लगातार सीखता रहा और
जो कुछ सीखा उसे प्रयोग में
भी लाया
वह व्यवहार कुशल भी था
उसे अपने हुनर और काबिलीयत पर
भरोसा भी था
उसने किताबी ज्ञान नहीं बल्कि
व्यवहारिक ज्ञान अर्जित किया
और उसका भरपूर उपयोग किया
सफलता के शिखर पर
अपने संयमित व्यवहार और
सकारात्मक सोच के बल पर
अपनी जीत का बिगुल बजाने के लिए
वह फिर बहुत तेज कदमों के
साथ
एक दिन पहुंच ही गया।