सोलमेट
सोलमेट
पंछी बन उड़ जाऊँ मैं
दूर क्षितिज छूँ आऊँ मैं
बोल.... बोल ऐ मेरे मन
किधर को अब जाऊँ मैं
दूर व्योम वो खिड़की देखो
खुद में झांक वो मकड़ी देखो
हृदय - हृदय अब जकडेगा वो
टूटी हुई वहाँ वो खिड़की देखो
प्राण पखेरू उड़ान भरेगा
बन साथी अब जान भरेगा
हर माया से रंगी है.. माया
हर पंछी फिर परवाज़ भरेगा
जन्म-मरण की रीत अनोखी
तेरी - मेरी ये प्रीत अनोखी
ईश्वर रमता है कण-कण में
हर मौसम की जीत अनोखी।
