संयोग वियोग
संयोग वियोग
मिलना बिछड़ना समय जीवन का यथार्थ जुड़ना टूटना
सच्चाई प्रेम विरह सुख दुख हृदय भाव की परछाई।।
वृक्ष के संग संग डाली अस्तित्व ना कोई स्वर कोलाहल
वृक्ष बृहद हस्ती की छोटी कस्ती हर्ष हरशाई।।
सदा खुशियों में झूमती मचलती
डाली पथिको की छाया फूल फल
आलंब भान नहीं डाली को टूटने का बिछड़ने का नही विश्वास।।
चाहे कितने भी पवन बवंडर आवे डाली आशा कि मुस्कान
वृक्ष संग संग सुख दुख का जीवन रस आनंद उमंग उत्साह ।।
एक दिन आता वृक्ष से अलग डाली टूट अलग हो विरह वेदना
सुख कि अनुभूतिअपने अस्तित्व वृक्ष से बिछड़ने का मलाल ।।
सुख शांति का बिखराव डाली का सौभाग्य किसी की झोपड़ी छत
संबल बन छाया की काया अभिमान।।
किसी खिड़की दरवाजे का
सौभाग्य वृक्ष से बिछड़ने के बाद डाली का सुख जन कल्याण।।
वृक्ष से बिछड़ना नहीं कुछ तो स्वयं जल कर रोटी देती
सर्दी से राहत का सौगात टूटने के बाद सुख आग।।
ख़ाक में मिलकर भी कितनो
को जाने क्या क्या सुख दे जाती
खुद मिट लूट कर औरो को पल प्रहर की
खुशी दे पाना टूटने का सुख सौभाग्य।।
