संरक्षण
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हे इन्सान
याद रख ये बात
करता भी तू है
भरता भी तू है
भोगता भी तू है
मैं तो शून्य हूँ
जिसे समझ पाना
तेरे बस की बात नहीं
नैतिकता को
रख ताक पर
तू काटे पेड़
दूषित करे जल
उजड़े धरती अपनी
जला दी तूने
धरती सारी
और पूछता है
मुझसे तू की,
मैं कहाँ हूँ?
तू चाहता है प्रकृति
को काबू करना
वो संतुलन
बनाने के लिए
रूद्र हो जाए
तो तू कहता है
इश्वर तू ने क्या किया
प्रकृति अपने नियम
से चलती है
प्रेरणा बन
श्रृजन कर, ध्वंश नहीं
मैं फिर कहता हूँ
करता भी तू है
भरता भी तू है
भोगता भी तू है