STORYMIRROR

Shilpi Goel

Abstract Fantasy

4  

Shilpi Goel

Abstract Fantasy

संदूकची

संदूकची

1 min
259

सहेज कर रखी हैं

कुछ यादें

बरसों पुरानी

मन की एक

संदूकची के भीतर

आज खोला जो उसे

जमी धूल

हटाने को

गुम हो गया मन,

पहुँच गया

वहीं कहीं बरसों पुराने

पलों को जीने

झकझोर कर जगाया

जब किसी ने मुझे

तो लौट आई

वर्तमान में

और रख दिया

संदूकची को समेटकर

जल्दबाजी में सिर्फ

सांकल लगाई

छूट गया ताला लगाना

और

वो बेहिसाब यादें

हल्की सी उठा-पटक से

वक्त बेवक्त

निकल आती हैं बाहर

मन में तरतीब से रखी

उस संदूकची से



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract