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समय

समय

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मुट्ठी में रेत सा फिसला जा रहा है,

कुछ जल्दी में मालूम होता है ये समय।


जरा कुछ ठहरे तो जी भर के गले लगा लूँ,

पर बेफिक्र अपनी ही धुन में चला जा रहा है समय।


रुके कहीं तो कुछ उसकी सुनूँ, कुछ अपनी कहूँ,

हाथ से मेरे दामन छुड़ा यूँ कहाँ जा रहा है ये समय।


गहरी थी दोस्ती कभी, साथ साथ चला करते थे,

अब यूँ अजनबी सा नज़रे क्यों चुरा रहा है समय।


ये वही है या कोई और है,

कुछ बदला बदला सा नज़र आ रहा है समय।


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