समय की माँग
समय की माँग
है प्रकृति की यही माँग
दो परिचय हम हैं इंसान,
करती पूरी मुराद हमारी
और क्या है फ़रियाद तुम्हारी।।
वक्त भी कहता है हमसे
अपने फर्ज को जान लो,
है प्रकृति मातजात हमारी
ये वक्त रहते मान लो।।
ना सूरज बदला न बादल बदला
न बदले चाँद तारे,
क्यूँ बदल गई फितरत हमारी
बतला ए इंसान प्यारे।।
जो चाहता था वो चाह रहा
जल, जीवन, वायु सब पा रहा,
फिर क्यूँ प्रकृति से अंजान रहा
जीव हत्या कर खाने का,
ये कैसा तेरा विज्ञान रहा।।
जल संरक्षण की पुरानी चाह
क्यूँ भूल रहा तू अपनी राह,
जीवन की आपाधापी में
क्या काफी है तेरी वाह वाह।।
पट ज्ञान के खोल दो
इस पर्यावरण को भी मोल दो,
अपनी संस्कृति अपना वजूद बचा
इसे नयी धारा से जोड़ दो ।।
आँख खुली तो इस धरा ने
अपनी गोद में समेट लिया,
बिन माँगे, बिन चाहे हमको
ये अनमोल जगत भेंट किया।।
आते ही नहाया, जाते भी नहाया
आने से जाने तक जल ने साथ निभाया।।
बदले में हम क्या करते,
क्या ये बताना जरूरी है...???
घंटों पानी व्यर्थ बहाते
क्या मूर्ख कहना जरूरी है...??
छोड़ कर पर्यावरण को मंगल ग्रह ढूँढ रहे
जीव जगत के पालन से अपना मुँह मोड़ रहे,
क्या यही हमारी सभ्यता है
क्या यही हमारी संस्कृति है..?
गाय को माता पेड़ का पूजन,
क्यों आयी इसमें विकृति है..??
जो सूरज बदल दे अपनी दिशा
फिर क्या दशा हो इस देश मे,
वसुधैव कुटुम्बकम क्यों भूल हम
भाग रहे विदेश में...??
जीना यहाँ मरना यहाँ
अपने समाज परिवेश में,
कुछ तो लौटा दो इस धरा को
जो हो मानव के वेश में।।
बदले इस परिवेश को मिलकर
सुन्दर सा परिवेश बनायें,
माँग यही है इस युग की मिल कर
सब पर्यावरण बचाएँ ।।
विष मिला दिया इस हवा में
हमने जल में कचरा घोल दिया,
महामारी आती इन कुकर्मों से
सो प्रकृति ने कहर ढोल दिया।।
जल है तो कल है, जल ही जीवन है
ये दीवारों पर दिखता है,
पर्यावरण बचाने के काम
कागज़ों में ही लिखता है।।
पाऊचों में पैक कर पानी हवा बिक रहा
फैक्ट्री का मलबा, घर का कचरा
सब नदियों में फ़िक रहा।।
जब भी बदलता बेमौसम देखा
ख़ुदा को दोष लगाते हैं,
खुद दुश्मन है हम प्रकृति के
विवेक का पाठ उन्हें पढ़ाते हैं।।
ओजोन परत ग्रीन हाउस को लेकर
नए मुद्दे उठाते हैं, ये बातें हैं बैठकों की
अमल में कितना लाते हैं...??
हम हिंद से हैं हम हैं महान
हम लेते दृढ़ संकल्प हैं,
प्रकृति पालन धर्म हमारा
और ना कोई विकल्प है।।
जितना दिखता जितना
बचा ये थोड़ा अकल्प है,
सहेज कर रखना है इसको,
ये बचा ही इतना अल्प है।।
भाई चारे का पाठ पढ़ाता ये हिन्दुस्तान हमारा,
बनना विश्वगुरु फिर से ये भारतवर्ष प्यारा।।
बचा के रखो धरती माँ को
ये फर्ज़ है तुम्हारा,
करती पुकार यही वसुंधरा
क्यों बनना है बेचारा