STORYMIRROR

Sri Sri Mishra

Inspirational

4  

Sri Sri Mishra

Inspirational

समय की धार

समय की धार

1 min
251

मुट्ठी से रेत जब फिसलने लगे

मोती से ख्वाब जब बिखरने लगे

छोटी सी जिंदगी में रिश्तो का कोहरा घना है

फिर भी समय की रेत पर हमें रुकना मना है


हमसफर मेरे तब बन जाना

जब कोई कतरा छू कर मुझ से गुजर जाए

मैं तुम हम होकर उस खतरे से लड़ जाएँ

बंद लम्हों के झरोखों से इल्तज़ा कर जाएँ


चलते चलते जो कदम रेत पर छूट जाएंगे

उन निशानों पे हम तेरे पीछे-पीछे चले आएंँगे

उठते लहरों की समंदर की रेत सारी काली हुई

लिखते लिखते मेरे शब्दों की कलम खाली हुई।


वक्त की इस बहती फिसलन को

चाह कर भी ना सँजो पाऊँ

दरिया-ए- लम्हों में मैं हिज्र बन सरकता जाऊँ

इन सवालों के कुंभ अँधेरी कोठरी में


रोशनी मैं कहांँ से लाऊंँ

ना कुछ बोलूँना कुछ पूछूँ

समय के दस्तावेजों को बस यूंँ ही लिखता जाऊँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational