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ROHIT ASTHANA NIRANKARI

Abstract Inspirational

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ROHIT ASTHANA NIRANKARI

Abstract Inspirational

समसामयिक ग़ज़ल

समसामयिक ग़ज़ल

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घर गांव वो दयार कि या है नगर नहीं।

हैवानियत गुज़र रही हद से किधर नहीं।।१।।


दिल कश्मकश में है कि चलूं किस तरफ, बता...!

मुझको तो सही राह भी आती नज़र नहीं।।२।।


 जब तक न ज़िंदगी में हमें रहनुमा मिले,

आसान हो सकेगा कभी-भी सफ़र नहीं।।३।।


 गुमराह कर रहे हैं जो मज़हब के नाम पर,

मैं उनकी हर ख़बर से कभी बे-ख़बर नहीं।।४।।


बचपन में जिनकी शाख़ पर थे झूलते रहे,

‘रोहित’ हमें वे अब कहीं दिखते शजर नहीं।।५।।


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