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ROHIT ASTHANA NIRANKARI

Abstract Romance Classics

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ROHIT ASTHANA NIRANKARI

Abstract Romance Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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कुछ लोग दिल-दिमाग़ से बंजर से हो गए।

ईमान अपना बेच गदागर से हो गए।।१।।


जब देश को ज़रा भी ज़रूरत कहीं पड़ी,

जो थे वतनपरस्त वे लश्कर से हो गए।।२।।


जीने न चैन से दिए मरने भी ना दिए,

अपने तमाम लोग सितमगर से हो गए।।३।।


जिस दम सभी के सामने राज़-ए-वफ़ा खुला,

सुन कर हमारी बात वे पत्थर से हो गए।।४।।


‘रोहित’ ख़याल-ए-यार में कहने लगे ग़ज़ल,

हम सच कहें तो प्यार में शायर से हो गए।।५।।


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