ग़ज़ल
ग़ज़ल
कुछ लोग दिल-दिमाग़ से बंजर से हो गए।
ईमान अपना बेच गदागर से हो गए।।१।।
जब देश को ज़रा भी ज़रूरत कहीं पड़ी,
जो थे वतनपरस्त वे लश्कर से हो गए।।२।।
जीने न चैन से दिए मरने भी ना दिए,
अपने तमाम लोग सितमगर से हो गए।।३।।
जिस दम सभी के सामने राज़-ए-वफ़ा खुला,
सुन कर हमारी बात वे पत्थर से हो गए।।४।।
‘रोहित’ ख़याल-ए-यार में कहने लगे ग़ज़ल,
हम सच कहें तो प्यार में शायर से हो गए।।५।।

