“ग़ज़ल”
“ग़ज़ल”
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हम उनसे दिल जो लगाए तो दिल्लगी आई।
निगाह जब से मिली इश्क़-ओ-आशिक़ी आई।।१।।
मैं बेक़रार बहुत था उन्हीं से मिलने को,
जब आए पास मेरे वो तो फिर ख़ुशी आई।।२।।
हमें तो हँसते हुए भी निकल पड़े आँसू,
कभी-कभी तो रुलाई में भी हँसी आई।।३।।
भले न बात रही वो जो बात पहले थी,
दुआ सलाम में फिर भी नहीं कमी आई।।४।।
दिलों की बात जो ग़ज़लों में कह रहे ‘रोहित’,
ख़याल-ए-यार में शायद सुख़न-वरी आई।।५।।