समर्पित
समर्पित
भौतिकवादी भरे इस युग में, अच्छे बनने की होड़ लगी है।
मानव तो इस कदर है फैला, डबल करैक्टर की रेल चली है।।
अंतर में खुद को न देखा, बाहरी जामा पहन चला।
भीड़ भरी इस दुनिया में,पता नहीं कौन अच्छा है कौन भला।।
सच्चाई की डगर पर चलना, इतना सरल अब है कहां।
खूब जानता जाना है एक दिन, समेट रखा है सारा जहां।।
नेक कर्म की बात तो छोड़ो कर न सका उपकार किसी पर।
अंधकार ही उसे है भाता, खुद बन बैठा बोझ किसी पर।।
कुदरत का करिश्मा तो देखो, सब कुछ उसको यहीं है मिलता।
खूब रोता अपने कर्मों पर, चाह कर भी कुछ कर न सकता।।
परमार्थ पथ मार्ग बड़ा कठिन है, विरलों को किस्मत से मिलता।
गर मिल जाए जिस मानव को,सहज,सरल जीवन है बनता।।
कष्टमय जीवन जिस ने काटा, प्रभु दर्शन का वह भागी बनता।
"नीरज" त्याग अहंकार अपना, "समर्पित" जीवन गुरु को करता।।