समर की दुल्हनियाँ
समर की दुल्हनियाँ
बिन्नी अब दिल्ली की हो गई थी। वो ठीक से गाँव कि बोल –चाल की भाषा नहीं बोल पाती हैं,क्योंकि उनके पापा 40 वर्ष पहले दिल्ली आ कर बस गये थे। बिन्नी के पापा रत्नेश अपने कार्य में मशगुल रहे। दरअसल बिन्नी के पापा स्कूल में कलर्क हैं। रोज घर से स्कूल,स्कूल से घर उसकी दुनियाँ है। रत्नेश की दो बेटी एक बेटा, सभी की पढाई – लिखाई में कोई कसर नहीं छोड़ा है।प्रिंस सबसे छोटा लड़का, कृति जो बिन्नी से छोटी,सभी की पढाई दिल्ली पब्लिक स्कूल में होता है। बच्चे अंग्रेजीदा हो गए। बिन्नी की पढ़ाई अभी पूरी भी नहीं हुई थी, बिन्नी कि शादी की चिंता रत्नेश को सताने लगा है। ।बिन्नी के लिए लड़का की तलाश में इतने साल बाद अपने रिलेटिव से संपर्क करते हैं जिसके माघ्यम से अपने ही गोत्र में पढ़ा –लिखा लड़का मिल जाए जो ज्या़दा दहेज़ के लिए मुहँ ना फैलाएं।
बड़ी मशक्कत के बाद इंजीनियरिंग पास लड़का मिल गया। उसमें अपार संभावना देखते हुए बिन्नी की शादी करवा दी जाती है। बिन्नी की शादी जिस गाँव में करवाया गया वो पिछड़ा गाँव था। जो बिहार के कोसी तट है। जो हर साल बाढ़ में यातायात बाधित हो जाता है। कई बार लोगों को विस्थापित हो कर ऊँची सकड़ पर तम्बू का सहारा लेना पड़ता है।
बिन्नी के लिए ये अलग दुनियाँ जैसा ही था। गाँव और शहर के कल्चर में बहुत कुछ अंतर था, खाना बनाने से लेकर सामान को व्यवथित रूप से रखें जाने तक साथ –साथ गाय,भैंस बकड़ी इत्यादि महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
बिन्नी उस कल्चर में कतई फीट नहीं बैठ पा रही थी। बिन्नी अब उस खूटे से मुक्त भी नहीं हो सकती थी। वह अपने आप को ढालने की कोशिश भी करने लगी थी। पति 'समर' अनेकों बार सरकारी और गै़र सरकारी संस्थान के इंतहान में असफल रहें, किसी बोर्ड से नोकरी की उम्मीद भी थी तो डिमांड बहुत बड़ा, सब रुपयों का खेल था।
समर बेरोज़गार,निठ्ल्ला कहलाने लगता था।शादी के बाद लड़की के मम्मी -पापा को ये निठल्लापन पसंद नहीं था,ना ही बेटी को सम्मिलित परिवार में रहना। बिन्नी के मम्मी –पापा चाहते है कि बेटी शहर में रहें, दामादजी नोकरी की तलाश करे।
जब पापा जी को एहसास हो गया उनकी बस की बात नहीं है नोकरी तलाशना, तब 'पापा जी' किसी कंपनी के आदमी से बोल कर दिल्ली में जॉब पर लगा देतें हैं।
समर अपने आप को वहाँ फीट ना समझ कर नोकरी छोड़ देता है। कमाई से जो रकम मिलता उससे ना तो समर का गुजरा हो पा रहा था ना ही घर पर बूढ़े माँ, बाबू जी की मदद। ।
इस प्रकार के निर्णय लेने कि वज़ह से बिन्नी के मम्मी – पापा बहुँत आहत हुए। बिन्नी कि शादी करवाने की पश्यतावा होने लगा था।
बिन्नी अंग्रेजीदां जरूर थी लेकिन कलात्मक गुण से सम्पन्न थी। ब्यूटि पार्लर और सिलाई –कटाई का इल्म भी था। जब भी कोई नया फैशन आता बिन्नी खुद से कपड़े के डिज़ाइन कर पहन लेती थी। बिन्नी अपने आसमान के टूकड़े को देखने लगी थी। अब वह फैसला कर लेती है, वह इन्हीं गाँव में अपने आप को स्थापित करेगी। शादी में जो सिलाई मशीन मिला था उसके पैर मशीन पर दोड़ने लगी। देखते –देखते मोहल्ले के सारे ऑडर बिन्नी के पास आने लगी, अब उसे नहीं लग रहा था की वह अपने आत्मसम्मान के साथ खेल रही हो।
मम्मी – पापा इस बीच अपने आप को दोषी भी खुद को मान रहे थे,बिन्नी के मम्मी -पापा, बिन्नी के दिमाग़ को समर से मुक्त होने के लिए ब्रेन वाश भी करने लगा था। मम्मी –पापा का तर्क था की "अभी ज़िन्दगी की पहली ही पड़ाव है,तुम्हारी शादी और कहीं करवा देगें वहाँ तुम खुशहाल ज़िन्दगी बीता सकती हो।"
यह सवाल बिन्नी के लिए आसान ना था, लेकिन उसके अन्दर सवाल उठना लाज़मी था। बिन्नी के अन्दर ज़िन्दगी के द्वंद्ध हिचकोलियाँ ले ही थी, उसमें सुराख़ होना शुरू हो जाती है। अंततः बिन्नी और समर के बीच दूरियाँ बढ़ जाती है। बिन्नी,समर से सवाल पूछने लगी है:
"आप के साथ मेरी ज़िन्दगी का भविष्य क्या है ? "
समर को यह सवाल झकझोर देती है और अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पता है:
"यही सवाल मैं अपने आप से पूछता हूँ। इसका जड़ कहां है? इस का दोष खुद पर मढ़ू या व्यवस्था पर ,
मेरे जैसे बेरोज़गारों का का़फिला खड़ा है। अब मुझे सिस्टम पर कोई भरोसा नहीं रहा, मैं खुद अपना रोज़गार खड़ा करना चाहता हूँ। तुम्हारे घर वालों को अच्छा नही लग रहा है, इसलिए ये ऊटपटांग सवाल तुम से करवाया जा रहा है। तुम सभी को शहर के लोग,वहाँ के कल्चर से मोहब्बत था तो मुझ जैसे देहाती लड़का से शादी क्यों करवाया ? तुम तो विरोध कर सकती थी।"
दोनों के बीच झगड़ा चल ही रहा था की दरवाज़े पर एक गाड़ी का हॉर्न बजने लगा। जिस गाड़ी में बिन्नी के मम्मी पापा थे। ।मानों सभी ड्रामा सुनियोजित चल रहा हो। गाँव वालों की भीड़ जमा हो जाती है।
बिन्नि को अलग करने का मामला पंचायत में चली जाती है,दोनों तरफ से दलीलें पेश होता है। पंचायत के लोग शादी तोड़ने के पक्ष में नहीं थे और बिन्नी के कई रिश्तेदार भी पंचायत के समर्थक थे।लेकीन बिन्नी के मम्मी –पापा के ज़िद ने समर और बिन्नी को अलग करवा दिया।पंचायत यही पर आ कर रुक गई पुरे गाँव में कानाफूसी होने लगी
,बिन्नी अब इस गाँव की दुल्हन नहीं भद्दी लड़की बन गई थी महिलाओं में कई तरह के बददुआँए मुहँ से निकलने लगे ...।
समर का सर झूक सा गया था जैसे उसके सर पर कलंक का टीका लग गया हो, यह कलंक बेरोज़गार होने पर था या एक ग़रीब देहाती होने पर जिस कारण उसकी ज़िन्दगी का साया साथ छोड़ गयी।
बिन्नी की गाड़ी समर के आखों से ओझल हो जाती है।