समारंभ
समारंभ
मेघ भी स्तब्ध हैं,
देखकर उसका प्रारब्ध,
कैसा है यह समारम्भ
वह है अचल,अटल
तूफ़ानों की अब किसे फिक्र।
है वह दृढनिश्चित,
क़दम न पीछे आएगा,
कैसा भी अवरोध हो,
उसके आत्मविश्वास को न डिगा पाएगा,
पहुँच गई वह उस शिखर पर,
जहाँ उसे न कोई हरा पाएगा।
साथ सभी पीछे छूट गए,
किताबें अब, उसका हथियार है,
अर्जुन की तरह,
लक्ष्य भेदना ही उसका संसार है
तारीफ़ में चित्रकार की
शब्द पढ रहे कम,
बयां कर दिया चित्र में अपने
नारी सशक्त, सर्वशक्तिमान है।