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Sajida Akram

Inspirational

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Sajida Akram

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"बंधन" कविता

"बंधन" कविता

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हमने अपने आस-पास की, 

हवाओं को कर दिया है प्रदुषित, 

सुख-सुविधा की ख़ातिर दी है, 

अपनी प्रकृती को ऊखाड़, 

बना दिये आलिशान, कंकरीट के, 

"जंगल"।


हमने उजाड़ दिया मासूम परिंदों, 

जानवरों की रिहायशी जंगल, 

उनको कर दिया चिड़ियाघर, 

   " ज़ू में बंधक, "


क्या रब ने अपनी मख़लूक़ को, 

ना दी थी आज़ादी फिर क्यों? 

इंसानों ने अपने मतलब के लिए, 

बेज़ुबानों को किया बेदख़ल, 

जंगलों को काट-काट कर किए, 

      "बर्बाद" 


प्रकृति ने भी ली करवट इंसान को, 

कर दिया क़ैद ले लो सांसे तुम भी

बने तो अपने कंक्रीट के जंगल से, 

जी लो तुम भी बंधक बन कर के, 

फिर करो महसूस कैसे लगता है, 

        "बंधन" ।

           


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