मैं हूं पृथ्वी
मैं हूं पृथ्वी
परिभाषा प्यार की नहीं जानती,
सबको मैं अपना ही अंश मानती,
सिंचित मुझसे हर डाली और पत्ती,
मुझमें ही समाया सबकुछ मुझमें ही विहीन,
मैं हूं धरा जिस पर सबका जीवन बसा,
मुझसे ही मिला मुझको ही छला,
काट वृक्षों को मेरी समृद्धि का विस्तार रोका,
कर अपने मकान निर्मित, मुझको ही रौंदा,
मत भूल इंसान तू भी मुझमें हो जाएगा विलीन,
क्योंकि मुझसे ही उत्पन्न सब औषधियां और बूटी,
मुझसे ही चलायमान है यह प्रकृति।
