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Neeraj pal

Inspirational

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Neeraj pal

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गुरु-कृपा

गुरु-कृपा

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मेरे दिल की कोई क्या जाने, क्यों तेज धड़कता है

याद तुम्हारी जब भी आती, नैनन अश्रु झलकता है


नित्य प्रति पूजा स्थल पर पुष्प चढ़ाया करताहूँ

आंख मूंदकर ध्यान में, तुझको ही ढूंढा करता हूँ


बिन तुम्हारे सुलभ न कुछ भी, चाहे कितना भी ध्यान लगा लूँ

सामर्थ्य नहीं है मुझ में इतनी, तुझकोअपने हृदय मेेंवसा लूँ


बिन "गुरुकृपा "सुलभ न कुछ भी, चाहे कितने भी

तीर्थ मझालूँ निज कृपा तो होना पाती, कैसे अपने को मैंं संभालूँ


एक दिन तो कृपा करनी ही होगी, मैं ठहरा भिक्षुक तुम्हारा

भिक्षा देना है काम तुम्हारा, इतना अटल है विश्वास हमारा


यह दरबार दीन को आदर, भिक्षुक भी बन जाता दाता

"नीरज "की तो औकात ही क्या, पर तुम तो हो मेरे विधाता।


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